URL फुलफॉर्म – Uniform Resource Locator (URL)
दोस्तों अगर Internet का इस्तेमाल करते हैं तो निश्चित रूप से अपने URL के बारे में जरूर सुना होगा। जब भी आप कोई Website खोलते है तो आपने देखा होगा कि जहाँ पर Website का Address डाला जाता है वहाँ पर URL लिखा होता है। आप सभी ने ये URL लिखा तो देखा ही होगा लेकिन इस URL का फुलफॉर्म बहुत कम लोगो को ही पता होता है।
इसीलिए आज के इस Article में हम आपको ना सिर्फ़ URL full form बताने वाले हैं बल्कि इससे जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण Information भी आपको देनें वाले हैं।
इस क्रम में आइये सबसे पहले जान लेते हैं कि URL का फुलफॉर्म क्या होता है?
URL full form in Hindi
URL फुलफॉर्म – Uniform Resource Locator (URL)
यह Formatted Text String है जिसका Use किसी भी Network के Resource को ढूँढने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग Web Browser, किसी सर्च इंजन अथवा किसी Software में किया जाता है। ये एक प्रकार का Web Address होता है जो कि किसी भी Search Engine पर डालकर कुछ भी खोजने के लिए Use किया जाता है।
Internet पर मौजूद हर Website तथ यहाँ पर दिखने वाले हर एक Page का अपना एक खास URL होता है जिसे खोलकर ही उस Page को या Website को देखा जा सकता है।
URL के types
Internet पर दिखने वाले URL के मुख्यतः तीन भाग होते है –
1. Protocol Designation – ये किसी भी URL का सबसे आगे का लिखा हुआ Text होता है। इसमें Protocol लिखा होता है। अधिकतर URL में अपने देखा होगा कि ‘http’ सबसे आगे लिखा होता है। ये ‘Http’ ही यूआरएल का Protocol कहा जाता है।
2. Host Name Or Address – किसी भी URL मे Protocol के बाद ‘Host name’ लिखा होता है। अपने देखा होगा कि URL में Http के बाद ‘//’ का Sign होता है इज़के बाद उस Website का Address लिखा होता है। ये Address ही Host Name कहलाता है।
3. File Or Resource Location – URL में Protocol तथा Host Address के बाद सबसे आख़िरी में जो Text लिखा होता है उसे उस URL का ‘Resource Location’ कहा जाता है।
किसी भी URL में ये तीनों ही चीज़ें ‘//:’ के निशान से अलग- अलग दिखाई जाती है।
दोस्तों हमनें URL का फुलफॉर्म, इसका Use तथा इसके बारे में ये भी जान लिया कि इसके कौन-कौन से Part होते हैं। इसी क्रम में अब आइये थोड़ा URL की History के बारे में भी जान लेते हैं।
History Of URL
URL सन 1994 में ‘Tim Berners- Lee’ द्वारा अस्तित्व में लाया गया था। आपको बता दे कि Tim Berners-Lee ने ही www (World Web Wide) की भी खोज़ की थी। URL की खोज़ का उद्देश्य, किसी भी Website को एक निश्चित पता तथा उसकी Location Define करना था।
Internet पर मौजूद कोई भी Website किसके द्वारा चलाई जा रही है तथा किस स्थान से चलाई जा रही है इसका पता URL के माध्यम से ही लगाया जा सकता है। URL में किसी भी Website का नाम, पता तथा उसके Range का विवरण होता है। जिसके आधार पर किसी भी Website की पूरी Detail निकाली जा सकती है।
Internet की शुरुआत के बाद बहुत तेज़ी से Website बनना शुरू हुआ। ऐसे में कोई Illegal Website ना बनें तथा Internet के माध्यम से कोई Crime कर के छुपा ना रह सके, इसी के लिए किसी ऐसी तकनीकी की आवश्यकता हुई जो कि Internet पर मौजूद लोगों को भी ढूँढ सके। इसीलिए URL को अस्तित्व में लाया गया।
आप कही पर भी बैठकर कोई भी Website खोल रहे हो, आपकी सारी Information आपके Internet Service Provider के पास मौजूद रहती है। वो जब चाहें आपको ढूँढ सकता है तथा आप Internet पर क्या Search कर रहे हो इस पर भी वो नजऱ रखता है। ये सब सिर्फ़ URL की वज़ह से ही Possible है।
Internet पर मौजूद हर Website तथ यहाँ पर दिखने वाले हर एक Page का अपना एक खास URL होता है जिसे खोलकर ही उस Page को या Website को देखा जा सकता है।
URL के types
Internet पर दिखने वाले URL के मुख्यतः तीन भाग होते है –
1. Protocol Designation – ये किसी भी URL का सबसे आगे का लिखा हुआ Text होता है। इसमें Protocol लिखा होता है। अधिकतर URL में अपने देखा होगा कि ‘http’ सबसे आगे लिखा होता है। ये ‘Http’ ही यूआरएल का Protocol कहा जाता है।
2. Host Name Or Address – किसी भी URL मे Protocol के बाद ‘Host name’ लिखा होता है। अपने देखा होगा कि URL में Http के बाद ‘//’ का Sign होता है इज़के बाद उस Website का Address लिखा होता है। ये Address ही Host Name कहलाता है।
3. File Or Resource Location – URL में Protocol तथा Host Address के बाद सबसे आख़िरी में जो Text लिखा होता है उसे उस URL का ‘Resource Location’ कहा जाता है।
किसी भी URL में ये तीनों ही चीज़ें ‘//:’ के निशान से अलग- अलग दिखाई जाती है।
दोस्तों हमनें URL का फुलफॉर्म, इसका Use तथा इसके बारे में ये भी जान लिया कि इसके कौन-कौन से Part होते हैं। इसी क्रम में अब आइये थोड़ा URL की History के बारे में भी जान लेते हैं।
History Of URL
URL सन 1994 में ‘Tim Berners- Lee’ द्वारा अस्तित्व में लाया गया था। आपको बता दे कि Tim Berners-Lee ने ही www (World Web Wide) की भी खोज़ की थी। URL की खोज़ का उद्देश्य, किसी भी Website को एक निश्चित पता तथा उसकी Location Define करना था।
Internet पर मौजूद कोई भी Website किसके द्वारा चलाई जा रही है तथा किस स्थान से चलाई जा रही है इसका पता URL के माध्यम से ही लगाया जा सकता है। URL में किसी भी Website का नाम, पता तथा उसके Range का विवरण होता है। जिसके आधार पर किसी भी Website की पूरी Detail निकाली जा सकती है।
Internet की शुरुआत के बाद बहुत तेज़ी से Website बनना शुरू हुआ। ऐसे में कोई Illegal Website ना बनें तथा Internet के माध्यम से कोई Crime कर के छुपा ना रह सके, इसी के लिए किसी ऐसी तकनीकी की आवश्यकता हुई जो कि Internet पर मौजूद लोगों को भी ढूँढ सके। इसीलिए URL को अस्तित्व में लाया गया।
आप कही पर भी बैठकर कोई भी Website खोल रहे हो, आपकी सारी Information आपके Internet Service Provider के पास मौजूद रहती है। वो जब चाहें आपको ढूँढ सकता है तथा आप Internet पर क्या Search कर रहे हो इस पर भी वो नजऱ रखता है। ये सब सिर्फ़ URL की वज़ह से ही Possible है।
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